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राजनीतिक चुटकी

एक नई सोच
एक नई सोच
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बड़े परीवार में पैदा हुए तो ‘‘शेह्जादे’’ बन गए,
देश में हुकूमत करने के कुछ इरादे बन गए,
“मुलेठी” खा-खा कर पूरी पुश्ते चला दी,
तभी एक बनारसी पान ने पूरी जीभ सडा दी|

कंधो में इनके भार बड़ा था,
परीवार चलाना था पर सामने एक पहाड़ खड़ा था,
देख सब शेह्जादे को आ गयी झपकी,
उतने में किसी चाय वाल ने दे डाली देश को प्यार की थपकी |

बदला देश का माहोल, बोला शेह्जादे अब तू घर जा के सोचना,
अपनी हार का कारण अब फुर्सत से खोजना,
उतने में आया एक खास्ता हुआ आम आदमी,
बोला हतियार बना के झाड़ू अपना मुझे देश को है पोछना,
राजधानी बना कुश्ती का मैदान,
pollution control करने आया ओड-ईवन का प्लान |

इधर पूरे देश में छाया नारंगी रंग था,
जिसके पीछे ढाल बना पूरा संघ था,
पहले दो सालों में मित्रों को बहुत लुभाया,
सबने अपना खता zero balance से खुलाया,
कुछ दिन गुज़रे चैन के गुजरात के कच्छ मे,
लगा मित्रों का जोर भारत स्वच्छ मे|

धीरे से गाँधी ने घुमाया अपना चेहरा,
जिसको देख मित्रों ने अपना मुह फेरा,
दीदी ने उठाई आवाज़ तो पप्पू ने संसद को घेरा|
इतने में 36 इंच का सीना बोला “क्या तेरा क्या मेरा”,
“आओ 50-50 सेटलमेंट करें और कर दें digital economy का सवेरा”|
छुट्टे के झगडे बंद हुए,
सारे transactions paytm से done हुए,
मित्रों ने भी एक नया सप्ना देख लिया,
बीच में आये mango-man बोले –
“बस करो भैय्या बहुत फेक लिया” |

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